हिंदी और पंजाबी का संबंध
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संबंध |
आधुनिक हिन्दी आर्य भाषाओं के मण्डल में पंजाबी अपनी विशिष्टताओं के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है । प्राचीन आर्य भाषा की सीधी सन्तान होने के कारण इसमें कई प्राकृतिक गुण अब भी मौज़ूद हैं । इस भाषा पर जितने भी देशी और विदेशी प्रभाव पड़े, वह शायद ही किसी अन्य भाषा पर पड़े हों किन्तु इसने अपने अपनत्व के स्वभाव के चलते उनको अपने अन्दर समाहित कर लिया और अपने आप को खत्म भी नहीं होने दिया ।
पंजाब के पूर्व में बोले जाने वाले पश्चिमी हिन्दी के प्रभाव से पंजाबी को अलग नहीं आंका जा सकता । पंजाबी को जन्म देने में जहां पुरानी पश्चिमी हिन्दी या शौरसेनी अपभ्रंश का बहुत बड़ा हाथ है, वहीं खड़ी बोली के विकास में पंजाबी ने बहुत बड़ा योगदान दिया है । पंजाबी और खड़ी बोली का व्याकरण भी लगभग एक सा ही है । पंजाबी के इतिहास पर नज़र डालें तो प्राचीन काल में सिद्धों नाथों की बोली जिसे संत भाषा कहा गया, का प्रयोग मिलता है जिस पर अपभ्रंश का पूर्ण प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। संत भाषा का मूलाधार पंजाबी मिश्रित खड़ी बोली है । सूफियों ने लोक भाषा को आधार बनाया । इनके अतिरिक्त पृथ्वीराज रासो, अमीर खुसरो की भाषा पर भी हिन्दी की खड़ी बोली का प्रभाव है इसलिए इस बोली को हिन्दवी कहा गया । मध्यकाल में पंजाबी बोली और साहित्य का बहुत विकास हुआ । गुरु नानके देव जी की वाणी में पहली वार कई प्रकार के लोक प्रचलित काव्य रूप व छन्द मिलते हैं । भाषा में पश्चिमी का अंश, हिन्दवी व संत भाषा का प्रत्यक्ष प्रभाव दिखता है । इनके अतिरिक्त गुरु अर्जुन देव जी, भाई गुरदास, गुरु गोबिन्द सिंह जी की भाषा पर संस्कृत, फारसी, ब्रज भाषा के सम्पूर्ण लक्षण दिखाई पड़ते हैं । साथ ही शाह हुसैन, सुल्तान बाहु और बुल्ले शाह, हाशम, कादर यार ने भी पंजाबी को प्रफुलित किया ।
Some Important links :
- https://www.arvinderkaur31.com/2018/03/Origion-of-hindi- Language.html
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